पिछली ग़ज़ल थी श्री के.के.सिंह 'मयंक' की जो लखनऊ में रहते हैं, ये ग़ज़ल सर्वत साहब के माध्यम से मिली थी।
इस बार की ग़ज़ल प्राप्त हुई है शिव कुमार "साहिल " जी से जो हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव गुरुप्लाह, जिला - ऊना के निवासी हैं। कहते हैं कि अभी ग़ज़ल कि बारीकियों व तकनिकी पक्ष से नवाकिफ हैं, सीखने क़ी कोशिश में लगे हैं।
ग़ज़ल
वो कहानी मेरी सुनाता है
इस तरह गम को वो सुलाता है।
ढूंढता है मुझे अकेले में
जब मिले तो नज़र चुराता है
आ गया है उसे हुनर ये भी
मुस्कुराहट में ग़म छुपाता है।
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
तू ये पानी में क्या मिलाता है।
जब कभी दिल जला तो आँखों से
गर्म पानी छलक ही जाता है।
कोई भी घर में अब नही रहता
बंद दर सब को ये बताता है
चाँद बैठा हुआ है पहरे पर
कौन तारे यहॉं चुराता है?
आपके सुझावों का स्वागत है।
चाँद बैठा हुआ है पहरे पर
ReplyDeleteकौन तारे यहॉं चुराता है?
बहुत खूबसूरत गज़ल ... शुक्रिया आपका ऐसी खूबसूरत गज़ल से रूबरू करने का .........
इस गजल पर कहने के लिए बचता ही क्या है. 'साहिल' ने बिलकुल उस्तादाना तेवर दिखाए हैं. मुझे तो कहीं भी कोई रेखा या बिंदु लगाने की जरूरत महसूस ही नहीं होती. साहिल को शायद एक वर्ष से पढ़ रहा हूँ और आज यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि इस लड़के ने बहुत मेहनत की है. जब मेहनत साफ़ नजर आ रही हो तो उसकी सराहना होनी चाहिए.
ReplyDeleteहम, उम्र में बड़े, कविता में थोड़ा अनुभव प्राप्त लोगों को ऐसे प्रयासों की तारीफ करनी चाहिए न कि अपनी विद्वता का प्रदर्शन. साहिल का यह प्रयास उन नए गजलकारों के लिए एक प्रेरणा है जो गजल के क्षेत्र में प्रयासरत हैं. मैं समझता हूँ नई पौध शायद हम से ज्यादा बुद्धिमान है और उसमें सीखने की ललक भी है.
जिंदाबाद साहिल. तुमने खुद को साबित कर दिया.
सर्वत साहब से मेल पर प्राप्त (माडरेशन में कुछ समस्या आने से पेस्ट कर काम चला रहा हूँ):
ReplyDeleteइस गजल पर कहने के लिए बचता ही क्या है. 'साहिल' ने बिलकुल उस्तादाना तेवर दिखाए हैं. मुझे तो कहीं भी कोई रेखा या बिंदु लगाने की जरूरत महसूस ही नहीं होती. साहिल को शायद एक वर्ष से पढ़ रहा हूँ और आज यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि इस लड़के ने बहुत मेहनत की है. जब मेहनत साफ़ नजर आ रही हो तो उसकी सराहना होनी चाहिए.
हम, उम्र में बड़े, कविता में थोड़ा अनुभव प्राप्त लोगों को ऐसे प्रयासों की तारीफ करनी चाहिए न कि अपनी विद्वता का प्रदर्शन. साहिल का यह प्रयास उन नए गजलकारों के लिए एक प्रेरणा है जो गजल के क्षेत्र में प्रयासरत हैं. मैं समझता हूँ नई पौध शायद हम से ज्यादा बुद्धिमान है और उसमें सीखने की ललक भी है.
जिंदाबाद साहिल. तुमने खुद को साबित कर दिया.
अंतराल के बाद सर्वत साहब लौट आये हैं। अब फिर सभी की सक्रियता बढ़नी चाहिये। उनसे पूरी तरह सहमत हूँ, आरंभ में शाइर को हौसला देने की ज़रूरत होती है।
ReplyDeleteजब कभी दिल जला तो आँखों से
ReplyDeleteगर्म पानी छलक ही जाता है।
Aha Shiv ki gazlen hamesha hi dil chhu jaati hai
bahut kamaal ki gazal kahi hai
आ गया है उसे हुनर ये भी
ReplyDeleteमुस्कुराहट में ग़म छुपाता है।
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
तू ये पानी में क्या मिलाता है।
जब कभी दिल जला तो आँखों से
गर्म पानी छलक ही जाता है।
चाँद बैठा हुआ है पहरे पर
कौन तारे यहॉं चुराता है?
वाह साहिल जी ने कितने खूबसूरत शेर कहे हैं। बधाई उन्हें।
इस बार की ग़ज़ल प्राप्त हुई है शिव कुमार "साहिल " जी से जो हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव गुरुप्लाह, जिला - ऊना के निवासी हैं। कहते हैं कि अभी ग़ज़ल कि बारीकियों व तकनिकी पक्ष से नवाकिफ हैं, सीखने क़ी कोशिश में लगे हैं।
ReplyDeleteढूंढता है मुझे अकेले में
जब मिले तो नज़र चुराता है
आ गया है उसे हुनर ये भी
मुस्कुराहट में ग़म छुपाता है।
जब कभी दिल जला तो आँखों से
गर्म पानी छलक ही जाता है।
कपूर साहब! आपके द्वारा प्रस्तुत इस गजल में ये तीन शेर जहन को छूते हैं..
बधाइयां !!
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
ReplyDeleteतू ये पानी में क्या मिलाता है।
Vaah!!
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
ReplyDeleteतू ये पानी में क्या मिलाता है।
Vaah!!
आदरणीय तिलक राज साहब जी
ReplyDeleteचरणबंदना
सबसे पहले तो बहुत-बहुत छमा चाहता हूँ । कुछः पारिवारिक समस्या के कारण से नेट पर आ ना सका !
आज मौका मिला तो अपनी गज़ल् पर अनुभबी आदरणीयगणो की टिप्पणियाँ देखकर बहुत अछा लगा अभी मैं ग़ज़ल कि बारीकियों , तकनिकी पक्ष से नवाकिफ , सिखने क़ी कोशिश में लगा हूँ ! खास तोर से मैं बताना चाहुगा के मेरी गज़ल् को आदरणीय तिलक राज साहब जी की इस्लाह् मिली तो मेरी गज़ल् हो पाई हे ,,, वरना बह्रो-बजन मे , मैं कहा ये महारत रखता हूँ ! आप सभी फ़नकारो के आशीर्बाद से धीरे-धीरे सीख jaunga !
आदरणीय तिलक राज साहब जी का बहुत बहुत धन्यबाद !
चरणबंदना
आपका साहिल
@शिव कुमार जी
ReplyDeleteआप तो भाई कुछ ज्यादह ही भावुक हो गये ग़ज़ल को लेकर।
साहित्य में सलाह प्रचलित रहा है और रहेगा।
इस ग़ज़ल के लगभग हर मिसरे में कुछ छूट ली गयी हैं और इसके माध्यम से एक महत्वपूर्ण विश्लेषण मैं अगली पोस्ट के साथ लगाने की कोशिश करूँगा, जो सीखने वालों के लिये विशेष रूप से काम का होगा।
अगली पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार है । धन्यवाद।
ReplyDeletemannaey Tilak ji is manch par main SWATI INDIA ki baat se sahmat hoon. Vaise bhi yeh safar hai, likhte rahna aur seekhna.
ReplyDeleteआ गया है उसे हुनर ये भी
मुस्कुराहट में ग़म छुपाता है।
Main Shiv Kumar sahil ko Badhyi v shubkamna dete hue yahi kahoongi
मुस्कराहट में ग़म छुपाते हो
है ख़ुशी फ़न तुम्हें ये आता है
देवी नागरानी
Ia manch ke liye kadam dar kadam aage badhna hai aur main SARWARINDIA ki baat se bilkul sahmat hoon..Safar ko Mnazil to nahin kaha ja sakta...Sahil ko meri badhayi v shubhkamnayein
ReplyDeleteआ गया है उसे हुनर ये भी
मुस्कुराहट में ग़म छुपाता है।
Bahut accha laga yeh sher...
मुस्कराहट में ग़म छुपाते हो
है ख़ुशी फ़न तुम्हें ये आता है
देवी नागरानी