Sunday, June 13, 2010

'मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ' की बह्र पर एक और ग़ज़ल चर्चा के लिये।

पिछली पोस्‍ट पर इंद्रनील भट्टाचार्जी की ग़ज़ल चर्चा के लिये लगाई गयी थी। इस बार की ग़ज़ल के साथ मैं शाईर का नाम नहीं दे रहा हूँ यह नाम अगली पोस्‍टमें ही बताया जायेगा । नाम जाहिर न हो सके इसलिये मक्‍ते के शेर में शाइर का नाम गायब कर दिया गया है। इस ग़ज़ल में मूल रदीफ़ काफि़या कायम रखा गया है। सीखने वाले शाइरों के लिये इसमें बहुत कुछ है।


पहले सजदे में सर झुकाता हूँ
फिर दुआ को मैं हाथ उठाता हूँ


गम उठाता हूँ, मुस्कुराता हूँ
यूं भी दुनिया को मुंह चिढ़ाता हूँ


इतने कांटे चुभोए हैं सब ने
फूल छूने से खौफ खाता हूँ


दुश्मनों को अगर मिलें खुशियाँ
जीती बाजी भी हार जाता हूँ


काविशों पर है एत्माद मुझे
शर्त लेकिन नहीं लगाता हूँ


सबकी खुशियों का जब सवाल आए
अपनी खुशियों को भूल जाता हूँ


दिल में जब भी घना अँधेरा हो
मैं खुदी का दिया जलाता हूँ


आग तो आप ही लगाते हैं
आग मैं तो नहीं लगाता हूँ


प्यार करता हूँ दुश्मनों को भी
इस तरह दुश्मनी निभाता हूँ


दोस्तों की अलग है बात मगर
दुश्मनों से भी मैं निभाता हूँ.

आपकी सार्थक टिप्‍पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।

8 comments:

  1. 1/3
    इतने कांटे चुभोए हैं सब ने
    फूल छूने से खौफ खाता हूँ

    इस शेर के दोनों मिसरों के जुड़ाव में कमी लगी मुझे. पहले मिसरा-उला में "इतने कांटे चुभोए हैं सब ने" इसमें सब ने दुःख दिए हैं, चाहे वे किसी भी रूप में आये, अब जो राहत(फूल) भी दिखे तो डर लगता है.

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  2. तिलक जी नमस्ते

    बहुत बेहतरीन गजल पढ़ने को मिली
    सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं

    आपने नाम नहीं बताया मगर मैं अन्दाज़ा लगा सकता हूँ कि ये गजल किसकी है :)

    और यह अन्दाज़ा केवल मत्ला पढ़ कर भी लगाया जा सकता है

    सुलभ भाई ने बढ़िया प्रश्न उठाया है मगर मुझे लगता है कि जैसे बार बार दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीने लगता है यहाँ पर भी वही बात कही गई है

    यह मेरी नासमझी है कि "काविशों" शब्द का अर्थ नहीं समझ पा रहा हूँ इसका अर्थ बता दें

    एक और शब्द है जो मुझे कई दिन से परेशान किये हुए है

    "तज़ल्लियों"

    इसका अर्थ भी बताने की कृपा करें.

    आपका वीनस

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  3. पता नही क्यों सुलभ साहब जी को

    'इतने कांटे चुभोए हैं सब ने
    फूल छूने से खौफ खाता हूँ "

    इस शेर के दोनों मिसरों के जुड़ाव में कमी लगी पर वीनस साहब जी ने "बार बार दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीने लगता है " की उदाहरण देकर शेर का माईना सामने रख दिया हैं , समझा दिया हैं ....

    फिलहाल तो मै उपरोक्त ग़ज़ल के तकनिकी पक्ष की कमी को नही समझ सकता पर यहाँ तक ख्याल की बात हैं वो एक से बढ कर एक हैं ...

    सुलब साहब से एक इल्तजा हैं की अगली बार वो आएं तो उपरोक्त शेर के जुड़ाव में जो कमी उन्हें लगी हैं उस कमी को दरुसत भी करे .. यहाँ खाली कमी बताने से बात नही बनेगी .. उसे दरुस्त भी करना पड़ेगा .. तभी तो मेरे जेसा अनाड़ी कुछ सीख पाएगा !

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  4. भाई साहिब मै भी अभी किसी की गलतियाँ सुधारने की स्थिती मे नही हूँ मगर कुछ शेरों के भाव अच्छे लगे।इतने कांम्टे वाला शेर बहुत अच्छा लगा तकनीकी गलतियाँ तो आप ही बतायें। धन्यवाद्

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  5. ग़ज़ल तो मुझको मुकम्मल लगी ... तकनीकी तो नही पर मैं अक्सर ग़ज़ल को गुनगुना कर देखता हूँ ... और इसको गुनगुनाने में कहीं रुकावट नही लगी ...

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  6. सबसे पहले वीनस के प्रश्‍न के उत्‍तर:
    काविश का अर्थ है खोद, कुरेद, टोह, खोज, तलाश, जिज्ञासा, चिन्‍ता, फि़क्र
    काविशों हिन्‍दी व्‍याकरणानुसार बहुवचन है इसका और उर्दू व्‍याकरण अनुसार इसका बहुवचन है काविशात।
    तजल्‍ली का अर्थ है प्रकाश, आभा, तेज, प्रताप, अध्‍यात्‍मज्‍योति। तजल्लियॉं हिन्‍दी व्‍याकरणानुसार बहुवचन है इसका और उर्दू व्‍याकरण अनुसार इसका बहुवचन है तजल्लियात।

    सुलभ ने प्रश्‍न उठाया है
    इतने कांटे चुभोए हैं सब ने
    फूल छूने से खौफ खाता हूँ।

    यह शेर यूँ भी कहा जा सकता था:
    खार इतने छुपे हैं फ़ूलों में,
    फूल छूने से खौफ खाता हूँ।
    या
    खार अक्‍सर छुपे मिले मुझको,
    फूल छूने से खौफ खाता हूँ।
    या
    खार, फ़ूलों की आड़ में पाये,
    फूल छूने से खौफ खाता हूँ।

    और यही शेर मैं कहता तो शायद ऐसे:
    मुझको कॉंटों से डर नहीं लगता
    फूल छूने से खौफ खाता हूँ।
    हर शायर का अपना अंदाज़े-बयॉं होता है।

    मेरा भी यही मानना है कि इस ग़ज़ल में सुधारने की गुँजाईश कम, सीखने की ज्‍यादह है, लगभग मुकम्‍मल ग़ज़ल है यह।

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  7. तभी तो बार बार पढ रही हूँ। धन्यवाद्

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  8. दोस्तों की अलग है बात मगर
    दुश्मनों से भी मैं निभाता हूँ.

    bahut achchhi baat kahi hai aapne .badhai!!

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