tag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post3688266832168376246..comments2023-05-18T05:39:36.289-07:00Comments on कदम-दर-कदम: इंद्रनील भट्टाचार्जी की ग़ज़ल चर्चा के लियेतिलक राज कपूरhttp://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-8544182567552408602010-07-05T12:13:33.551-07:002010-07-05T12:13:33.551-07:00इतने प्रबुद्ध शाइरों की टिप्पणियों से बहुत कुछ सीख...इतने प्रबुद्ध शाइरों की टिप्पणियों से बहुत कुछ सीखने को मिला ...वीनस जी ने अपने सुझाव कुछ यूँ दिए ...<br /><br />१- दिल जिसे हर घड़ी बुलाता है<br />जानता है वो दिल जलाता है ?<br />ये यूँ हो सकता है -<br />दिल जिसे हर घड़ी बुलाता है <br />जानकर दिल वही जलाता है <br /><br /><br />२- प्यार से हाँथ वो मिलाता है<br />और फिर फिर मुझे डराता है(बात कुछ जमी नहीं)<br />प्यार से हाथ वो मिलाता है <br />उसका ये ढंग ही डराता है <br />या <br />ढंग उसका यही डराता है <br /><br /><br />४- आजकल पास वो नहीं आता<br />और बातें बहुत बनाता है<br />ऐसा कहने से शायर का मकसद खत्म हो जाता है <br />इसे यूँ कह सकते हैं...<br />आजकल पास वो नहीं आता <br />दूर से हाथ बस हिलाता है<br /><br /> <br /><br />५- रात भर कितने भी वो ख़्वाब बुने<br />भोर होते ही भूल जाता है<br />इस पर जमाल साब ने खूब कहा है <br />रात भर जाग कर जो ख्वाब बुने<br />सुब्ह होते ही भूल जाता है.<br />या सहर होते ही भूल जाता है <br /><br /><br /><br />७- सेल उसकी अदा निराली है<br />हार कर भी वो मुस्कुराता है <br />(इस तरह भी शाइर का मकसद बदल जाता है )<br />मेरे ख़याल से इसे इसी तरह रहने देना चाहिए <br /><br />शैल उसकी अदा निराली है <br />हार कर वो मुझे हराता है <br />उसके हारने मे मेरी भी हार है ... ये बात कहना चाहता है शाइर <br /><br />मै गज़ल नहीं कहता लेकिन लगाव बहुत है मेरा गज़लों से <br />इस लिए कुछ सीखने समझने चला आता हूँ <br />जो कुछ लिखा है अपनी सहज बुद्धि के अनुसार <br />किसी की आलोचना या बुराई करना मेरा मकसद नहीं है <br />मै स्वयं अपनी परीक्षा ले रहा था ...<br />ऐसे ब्लॉग पर मंज कर शायद हम भी कुंदन हो जाएँ ,,,, शुक्रिया तिलक साहबPadm Singhhttps://www.blogger.com/profile/17831931258091822423noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-86373055458090355712010-06-10T23:57:37.802-07:002010-06-10T23:57:37.802-07:00बहुत दिन की गैरहाज्री हो गयी जो थोडा बहुत सीखा था ...बहुत दिन की गैरहाज्री हो गयी जो थोडा बहुत सीखा था शायद अब दिमाग से बिलकुल निकल गया है। दो चार दिन फिर पिछला पढूँगी और कुछ कहने की हालत मे आऊँगी। अभी अपनी गज़ल का क्या हुया ये भी देखना है। पिछले सबक भी पढने हैं मगर दिमाग अभी भी घर की उलझनों मे है मेरी अनुपस्थिती के लिये क्षमा मगर अब अनुपस्थित नहीं होऊँगी जल्दी आती हूँ मै भी कोशिश करती हूँ इस गज़ल के लिये धन्यवाद्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-70171611802566080472010-06-09T20:45:46.667-07:002010-06-09T20:45:46.667-07:00माफ कीजियेगा, पांच नंबर शेर में गलती हो गई, वो इस ...माफ कीजियेगा, पांच नंबर शेर में गलती हो गई, वो इस तरह होना चाहिए था <br />चाँद ने रात से कहा जो था <br />भोर होते ही भूल जाता हैIndranil Bhattacharjee ........."सैल"https://www.blogger.com/profile/01082708936301730526noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-78415567416176008382010-06-09T11:56:12.570-07:002010-06-09T11:56:12.570-07:00दिल जिसे हर घड़ी बुलाता है !
वो ही हर लम्हा रुलाता...दिल जिसे हर घड़ी बुलाता है !<br />वो ही हर लम्हा रुलाता हैं !!<br /><br />अभी फिलहाल इतना ही कह सकता हूँ ! अभी सीख रहा हूँ ... आप फ़नकारो के आशीर्बाद से सीख जाऊंगा !Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13680139649745437697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-4861538045477983742010-06-09T11:49:05.798-07:002010-06-09T11:49:05.798-07:00तिलक जी, सर्वत जी और वीनस जी, आप सबको धन्यवाद ... ...तिलक जी, सर्वत जी और वीनस जी, आप सबको धन्यवाद ... एक तो फिर से मेरी इस रचना को स्थान देने के लिए , दूसरी उसपर अपना सुझाव देने के लिए ... दरअसल आजकल देश आया हुआ हूँ (इस वक्त दिल्ली में हूँ) ... और बिलकुल इन्टरनेट पर बैठने का मौका नहीं मिल रहा है ... ना ही कुछ लिखने/पढ़ने/कहने का ....<br />जब लौट कर जाऊँगा तभी शायद फिर मौका मिलेगा कि कुछ कर पाऊँ ...<br />आज बहुत दिन बाद फिर से इन्टरनेट पर बैठने का मौका मिला तो सबसे पहले इस ब्लॉग को देखा ... यदि मेरी सक्रियता में कमी आई है तो क्षमा चाहता हूँ .... शायद दो हफ्ते और लगेंगे ... पर आज इसमें कुछ लिखना ज़रूरी था ... <br /><br />खैर, आज मौका मिला है, तो कुछ कह लेता हूँ ... <br /><br />सबसे पहले वीनस जी के सुझावों पर :<br />१. दरअसल मैं दूसरा शेर हुस्ने मतला बनाना ही नहीं चाहता था ... खैर, अब तो उसे ऐसे ही लिखते हैं ....<br />२. दो नंबर शेर में मिश्रा ए सानी में ‘फिर’ का दो बार इस्तमाल कुछ जम नहीं रहा है ...<br />३. पांच नंबर शेर में मिश्रा ए ऊला में बहर टूट रहा है ... <br />४. सात नंबर शेर पर आपका सुझाव मुझे बहुत अच्छा लगा ...<br />तिलक जी तो पहले ही कुछ सुधार कर चुके हैं ... फिर भी मैं एक बार कहना चाहूँगा कि उनकी एक पंक्ति “आतिशे ग़म जला के जाता है।“ मुझे बेहद प्यारी लगी ... एकदम गजब और मस्त ... उनके इन्ही शब्दों को मैंने छे नंबर शेर में इस्तमाल करने की कोशिश की है ...<br />सर्वत जी कई जगह पर अपना सुझाव दिया है ... उनको बहुत बहुत शुक्रिया ...<br />मैंने ये ग़ज़ल फिर से कहने की कोशिश की है ... कुछ शेर में काफी फेर बदल किया है ... हालाँकि, पहले से ही जो बात मेरे दिल में थी, वो बात बदली नहीं गई है, उसे नए ढंग से कहने की कोशिश है ...<br /><br />दिल जिसे रहनुमा बनाता है <br />आशियाँ वो जलाके जाता है <br /><br />प्यार से हाथ जब मिलाता है <br />जाने क्यूँ डर मुझे सताता है <br /><br />रिस रहे घाव भूल जाये पर<br />शौक से पैरहन सिलाता है <br /><br />जो कभी लग गले से जाता था <br />बस तकल्लुफ अभी निभाता है <br /><br />रात ने चाँद से कहा जो था <br />भोर होते ही भूल जाता है <br /><br />डर उसे आँधियों से क्या है जो <br />आतिशे गम से दिल जलाता है <br /><br />‘सैल’ उसकी अदा निराली है <br />हार कर भी वो मुस्कुराता हैIndranil Bhattacharjee ........."सैल"https://www.blogger.com/profile/01082708936301730526noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-2078109874534955722010-06-07T21:39:28.388-07:002010-06-07T21:39:28.388-07:00सर्वत साहब का यह कथन कि 'रचनाकार के शब्दों में...सर्वत साहब का यह कथन कि 'रचनाकार के शब्दों में कम से कम बदलाव ही ठीक लगता है' का यह आशय कदापि न लें कि मूल शेर में कोई छेड़छाड़ नहीं करनी है। छेड़छाड़ का दायरा सीमित रहना चाहिये जिससे मूल रूप बना रहे और यथासंभव त्रुटिरहित हो जाये। हॉं, मूल रूप से अगर स्पष्ट बात न निकल रही हो तो सुधार जरूरी हो जायेगा। <br />मैनें पूर्व में जो टिप्पणी दी थी वह ग़ज़ल मॉंजने के लिये खुद शाइर के लिये है न कि सलाह देने वालों के लिये। ग़ज़ल मॉंजने और ग़ज़ल भॉंजने का अंतर समझना जरूरी होता है अच्छी शाइरी के लिये।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-19363353994089783802010-06-07T20:59:05.485-07:002010-06-07T20:59:05.485-07:00इस गजल को देखने के बाद यह साफ़ नजर आया कि इस दौरान...इस गजल को देखने के बाद यह साफ़ नजर आया कि इस दौरान इन्द्रनील ने बहुत सख्त मेहनत की है. शेर कहने में, आरम्भिक दौर का जो कच्चापन है, यदि उसे छोड़ दिया जाए तो बहर के मामले में मजबूती तो स्वीकार करनी ही होगी. चूंकि वीनस और तिलक जी अपनी 'मश्क़' कर चुके हैं, इस लिए मेरी भी हिम्मत थोड़ी बढ़ी है. इस गजल को, इन्द्रनील के ख़यालात में तब्दीली किए बगैर, अपने ढंग से संवारने का प्रयास किया है, देखें और अपनी राय दें:<br /><br />दिल जिसे हर घड़ी बुलाता है <br />जी हमारा वही जलता है.<br /><br />हाथ वो प्यार से मिलाता है <br />उसका यह ढंग ही डराता है.<br /><br />जख्म इंसान भूल जाए भले <br />पैरहन शौक़ से सिलाता है.<br /><br />रात भर जाग कर जो ख्वाब बुने <br />सुब्ह होते ही भूल जाता है.<br /><br />उस को लहरों से डर नहीं लगता <br />रेत पर जो महल बनाता है.<br /><br />'सैल' उसकी अदाएं क्या कहना <br />हार कर वो मुझे हराता है.<br /><br />मैं पहले भी कह चुका हूँ कि रचनाकार के शब्दों में कम से कम बदलाव ही ठीक लगता है मुझे. कोशिश यह भी होती है कि अर्थ भी किसी दूसरे कैनवस का हिस्सा न बनने पाए.<br />मैं शायद कुछ दिनों तक नेट से दूर रहूँ, नेट से क्या, इस शहर से दूर रहूँगा. बीच में मौक़ा निकाल कर ब्लॉग दर्शन जरूर करूंगा.सर्वत एम०https://www.blogger.com/profile/15168187397740783566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-31333723007385328722010-06-06T23:28:18.292-07:002010-06-06T23:28:18.292-07:00इस ग़ज़ल के अशआर की कहन में सुधार की कितनी गुँजाईश...इस ग़ज़ल के अशआर की कहन में सुधार की कितनी गुँजाईश है इसका सिर्फ एक उदाहरण दे रहा हूँ:<br />दिल जिसे हर घडी बुलाता है<br />जानकर वो जिया जलाता है<br />यह किसी शाईर के आरंभिक शेर के रूप में भले ही ठीक लगे लेकिन ये शेर अगर यूँ कहा जाये तो:<br /><br />दिल ये मेहमॉं जिसे बनाता है<br />आग इसमें वही लगाता है।<br /><br />अब दूसरी पंक्ति अगर यूँ कहें कि:<br />दर्द-ए-दिल वो ही दे के जाता है।<br /><br />अब दूसरी पंक्ति अगर यूँ कहें कि:<br />आग वो ही लगा के जाता है।<br />या<br />आतिशे ग़म जला के जाता है।<br />या<br />चंद यादें बसा के जाता है।<br />या<br />ऑंख को ओस देके जाता है।<br />या<br />ऑंख से ओस वो गिराता है।<br />या...<br />या...<br />या...<br /><br />आशय यह है कि ग़ज़ल के अशआर एक बार कह लेने से काम समाप्त नहीं हो जाता है। उन्हें सामने रखें और देखें कि मिस्रा-ए-सानी में बदलाव करते हुए किस तरह कहन को वह गहराई दी जा सकती है जिसमें पढ़ने/ सुनने वाला डूब जाये।<br />कई बार ऐसा भी होगा कि मूल शेर कहीं खो जायेगा और एक नया ही शेर निकल आयेगा। बस यही अशआर को मॉंजने की कला है।<br />मैं तो जब किसी शेर पर पूरी गंभीरता से काम करता हूँ तो शेर पन्ने के बीचों बीच लिखकर काम चालू करता हूँ। मिस्रा-ए-उला जैसे जैसे सुधरता जाता है उपर बढ़ता जाता है और मिस्रा-ए-सानी नीचे, हर सुधार के साथ सुधरे हुए रूप को फिर पढ़ता हूँ-फिर पढ़ता हूँ-फिर पढ़ता हूँ ओर सुधार होता जाता है।<br />अब अगर इस तरह इस ग़ज़ल पर कोशिश की जाये तो कैसा रहेगा?तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7111421015567416129.post-18508149528906255662010-06-06T18:54:53.872-07:002010-06-06T18:54:53.872-07:00"नये शाइरों ने शायद आत्मविश्वास की कमी के क..."नये शाइरों ने शायद आत्मविश्वास की कमी के कारण नहीं कहा और कहने का दायित्व अनुभवी शाइरों पर छोड़ दिया"<br /><br />जी हाँ मैने फोन पर बात होने पर भी स्वीकार किया था और यहाँ भी स्वीकार करता हूँ कि मै यहाँ कमेन्ट देने से बचता रहा हूँ <br /><br />कोई कमेन्ट किया भी तो मेल के जरिये किया ,,,<br /><br /> "इस ब्लॉग पर कमसे कम एक लाभ तो होगा कि जब आपकी टिप्पणी की काट आयेगी तो आपको और अधिक विषय स्पष्टता प्राप्त होगी, साथ ही उन्हें भी प्राप्त होगी जो आपकी टिप्पणी और उसपर प्राप्त प्रति-टिप्पणी पढ़ेंगे। "<br /><br />अब इसे पढ़ने के बाद खुल कर अपना कमेन्ट करने की हिम्मत हो रही है <br /><br />सेल जी की गजल के लिए कुछ सुझाव -<br /><br />दूसरा शेर हुस्ने मत्ला नहीं है क्योकि उसमे काफिया का निर्वहन नहीं हुआ है जो कि मतले मे "आता" रखा गया है, इसलिए अंत मे रदीफ का रखना गलत है <br />मैंने मतले को दुरुस्त करने की कोशिश की है जिससे दूसरा शेर हुस्ने मत्ला बन जाए <br /><br />कुल ७ शेर हैं क्रमानुसार सुझाव है <br /><br />१- दिल जिसे हर घड़ी बुलाता है <br /> जानता है वो दिल जलाता है ?<br /><br />२- प्यार से हाँथ वो मिलाता है <br /> और फिर फिर मुझे डराता है <br /><br />३- *** <br /> <br />४- आजकल पास वो नहीं आता <br /> और बातें बहुत बनाता है <br /><br />५- रात भर कितने भी वो ख़्वाब बुने <br /> भोर होते ही भूल जाता है <br /><br />६- *** <br /><br />७- सेल उसकी अदा निराली है <br /> हार कर भी वो मुस्कुराता है <br /><br />अब मुझे इंतज़ार हैं <br />मुफलिस जी, सर्वत जी, नीरज जी का ....... :)वीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.com